बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा है कि दलित की हत्या पर पीड़ित परिवार को नौकरी देने का विरोध करने वाला राजद क्या घोषणा कर सकता है कि उन्हें मौका मिला तो बिहार में हर तरह की अनुग्रह राशि और अनुकंपा नौकरी बंद कर दी जाएगी? जो लोग ऊंची जाति के गरीबों को 10 फीसद आरक्षण देने तक का विरोध करते हैं, वे उनके हितैषी बनने के लिए आश्रित को नौकरी देने में समानता की दुहाई दे रहे हैं। दलित और सामान्य वर्ग के लोग मिल कर राजद को फिर सबक सिखायेंगे।
उन्होंने कहा है कि किसी हादसे या वारदात में मौत होने पर पीड़ित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग अक्सर की जाती है, लेकिन जब सरकार ने दलित समाज के व्यक्ति की हत्या होने पर अपनी पहल पर नौकरी देने की घोषणा कर दी, तब इसका क्यों विरोध किया जाने लगा? कुतर्क की पराकाष्ठा करने वाले बतायें कि कोई अनुग्रह राशि या राहत किसी अप्रिय घटना को बढ़ावा देने के लिए होती है?
जो अनुकंपा और दंड में अंतर नहीं समझतेे, वे सरकार क्या चलायेंगे?
उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने दलितों को वोट बैंक के तौर पर नहीं, तरक्की की दौड़ में पिछड़े इंसान के रूप में देखा। दलित छात्रों के लिए छात्रावास और छात्रवृत्ति का इंतजाम किया गया। इस समाज के लोग तीसरी-चौथी श्रेणी की नौकरियों के बजाय उद्यमी बनें, इसके लिए 10 लाख रुपये तक के आसान कर्ज देने की योजना लागू की गई। दलित कल्याण की योजनाएँ सरकार की नीति-नीयत से तय होती हैं, चुनाव से नहीं।